रूप तोर अंधियारी म करथे,
चंदा जैसे करय अंजोर,
पूर्णिमा के चंदा उतरे,
लागय झक झक चारो ओर।
माथ म टिकली कान के बाली,
नथनी लागे सुघ्घर तोर,
तोर नजर के बान परय जब,
तनमन घायल हो जावय मोर।
गुरतुर गुरतुर तोर बोली,
कान म मधरस घोरत हे,
तो हिरदे के अंगना म जी,
मोर चंदयिनी गोंदा बगरत हे ।
तोर मटक के रेंगना टुरी,
हिरनी जैसे तोर चाल हवय,
कतका झिन ल घायल करबे,
अइसे हवय तोर नैन कटार।
रात के नींद उड़ागे पगली,
रहि रहि आवय तोर खयाल,
झम झम तोर पयीरी बाजय,
जैसे नाचय मोर ह खार।
रचना-
हेमंत मानिकपुरी
भाटापारा
जिला-
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment