Friday 10 July 2015

रूप तोर अंधियारी म करथे(छत्तीसगढ़ी)

रूप तोर अंधियारी म करथे,
चंदा जैसे करय अंजोर,
पूर्णिमा के चंदा उतरे,
लागय झक झक चारो ओर।

माथ म टिकली कान के बाली,
नथनी लागे सुघ्घर तोर,
तोर नजर के बान परय जब,
तनमन घायल हो जावय मोर।

गुरतुर गुरतुर तोर बोली,
कान म मधरस घोरत हे,
तो हिरदे के अंगना म जी,
मोर चंदयिनी गोंदा बगरत हे ।

तोर मटक के रेंगना टुरी,
हिरनी जैसे तोर चाल हवय,
कतका झिन ल घायल करबे,
अइसे हवय तोर नैन कटार।

रात के नींद उड़ागे पगली,
रहि रहि आवय तोर खयाल,
झम झम तोर पयीरी बाजय,
जैसे नाचय मोर ह खार।

रचना-
हेमंत मानिकपुरी
भाटापारा
जिला-
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

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