जाने किस वक्त से रीत निभाते है,
वो महल आज भी झोफड़ों को चिढ़ाते है।
गुजरे लम्हो और आज मे फर्क क्या ह ?
कोई भूखा है तो कोई गुलछर्रे उड़ाते हैं ।
गरीबी को इस्तेमाल करना अमीरों की फितरत,
स्लम पर बनी पिक्चर यहां कऱोड़ो कमाते है ।
कोई एसा वक्त नही जो गरीबी बदल दे,
यहाँ कागज़ी नाव मे वादों के सफर होते है ।
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
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