Sunday 12 July 2015

जिंदगी की डगर बहुत कठिन थी(हिन्दी)

जिंदगी की डगर बहोत कठीन थी,
फूल कहीं नही कंटीली झाड़ियाँ जरूर थी,
बचपन हमने जिया है या नही,
आज भी ईक प्रश्न चिन्ह लगता है ।।

गरीबी का चादर ओढ़ हमने सोया है,
सपने मे हि अमिरी का मजा लिया है,
जब भी नींद खुली सपनो को जगाये रखा,
उसी उबड़ खाबड़ रास्तेसे आखिर पक्की सड़क तक जाना था ।।

जिंदगी से बहोत कुछ सीखा है,
डूबते सूरज की लालिमा भी देखा है,
पर आज ठोड़ी बहोतजो  सफलता पायी है मैन,
वही उबड़ खाबड़ रास्तों से ही सीखा है ।।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

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