बरसात की बूंदों का मिट्टी पे टपकना,
तालाब मे नंगे होकर फिसलना,
हाथ पांव मे मिट्टी लगाकर साबुन बनाना,
वो सोंधी महक मिट्टी की आज भी ताजा है ।
बचपन मिट्टी से ही चहका था,
हर गली मिट्टी ही सनता था,
गांव के आंगन मे मिट्टी से खेलना,
वो मिट्टी के घरौंदे आज भी ताजा है ।
चोट लगे तो मां मिट्टी का लेप लगाती थी,
मिट्टी की ठंडक कितना राहत पहुंचाती थी,
मिट्टी से ही तो जीवन अंकुरित,
मिट्टी से तिलक लगाना अभी ताजा है ।
मै भूला नही उस मिट्टी के अफसाने,
जिस मिटटी मे चंचल बचपन गुजरा,
हे भारत के माटी अर्पण तुम पर सब कुछ,
अभी मेरी भुजाओं का संबल ताजा है ।
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार -भाटापारा
छत्तीसगढ़
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