Thursday 9 July 2015

फेर छाती के गोरस पी लेतेंव तोर दाई(छत्तीसगढ़ी)

॥फेर छाती के गोरस पी लेतेंव मै तोर दाई॥

फेर छाती के गोरस पी लेतेंव मै तोर दाई,
फेर लयीका बन तोर मेरा मै रहितेंव दाई,
उही बिछौना खटिया के उही जठौना कथरी के,
फेर लोरी सुनके चुप सुत जातेंव मोर दाई,

फेर छती के गोरस.......

कतको नींद लगय तै जागत जागत सोये हवस,
मोर मुतुआ, चीची म तै कतका सनाय हवस,
बोखार होवय मोला जब रात धरे तैं जागे हवस,
उही मया ल पाय बर फेर लयीका बन जातेंव दाई,

फेर छाती के गोरस.........

कतका सुघर नहुवाना तोर गोड़ लमाके दाई,
बढ़िया कुरथा पहिराते जैसे गवूटिया कस दाई,
लगे पाउडर, टिकली हम चम चम चमकन दाई,
फेर कोरा म बैठ के तोर हाथ ले खातेंव दाई,

फेर छाती के गोरस.......

उही लैकापन फेर भौंरा बांटी म हांथ लमातेंव,
फूटहा डब्बा बांधे कनिहा गंड़वा बाजा बजातेंव,
नरवा डबरा म चुभक चुभक कतका चिखलातेंव,
खोजत आते गारी देवत हांथ धरे ले जाते दाई।

फेर छाती के......

कनकी रोटी धरे झोला रेंगत स्कूल जातेन,
बर तरी झोला मढ़ा संगी साथी संग भुलातेन,
स्कूल म पढ़तेन लिखतेन अउ बदमाशी करतेन,
थके मांदे जब आतेंव तोर कोरा सुरतातेंव दाई ।

फेर छाती के गोरस पी लेतेंव मै तोर दाई..

रचना-
हेमंत मानिकपुरी
भाटापारा
जिला-
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

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