विचारों के अंतरद्वंद मे निहारती ,
अबला सी इक कर्मठ नारी ।
उलझे ताना बाना में उलझी है,
असंख्य विचारों की अनुभूति ।
कर्तव्य बोझ ,विचारों की उत्श्रृंखलता,
पग पग पथ पर अग्नि परीक्षा ।
वात्सल्यी ,करूणामय नारी,
विचलित सी क्यों हर बार तेरी आशा !
समाज की परिभाषाओं मे बंधी बंधी,
आज भी है तेरी अभिलाषा ।
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
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