दौरे जहां अब बदला बदला लगता है,
अब तो परछाईयों से भी डर लगता है ।
तमाम रिशतों की परख कर ली है,
अपने भी आजकल पराया लगता है ।
वो शहर ढुंढते है मोहब्बत की,
जंहा हर शख्स मुस्कुराया लगता है ।
आजकल फिजां मे बागों की महक नही,
अब फूलो ने खिलना छोड़ दिया लगता है ।
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
No comments:
Post a Comment