Wednesday 15 July 2015

दौरे जंहा अब बदला बदला लगता है(गज़ल)

दौरे जहां अब बदला बदला लगता है,
अब तो परछाईयों से भी डर लगता है ।

तमाम रिशतों की परख कर ली है,
अपने भी आजकल पराया लगता है ।

वो शहर ढुंढते है मोहब्बत की,
जंहा हर शख्स मुस्कुराया लगता है ।

आजकल फिजां मे  बागों की महक नही,
अब फूलो ने खिलना छोड़ दिया लगता है ।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा

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