दरूहा के दारू बर मया अतका,
फेसल के गिरीस भकाक ले मूड़भसरा,
माड़ी कोहनी छोलाय अउ कनिहा ल टमरथे,
कहिथे मोर बोतल बांच गे ददा ।
तै फूट जातेस त मोर का होतिस,
रात भर तोर सुरता म नींद नई परतिस,
माड़ी कोहनी के का छोलाथे रहिथे,
दारू असन दवा भाग मानी ल मिलथे ।
उही हालत म वो ह घर आईस,
देख के लयीका मन हड़बड़ाईन,
एक घ लगाके कहिथे चुप राहव तु मन,
आज मोर जान ल इही दारू बचाईस।
दरूहा के बात के जवाब ककरो तिर नई हे,
बी ए एम ए ल छोड़ पीएचडी मेर नई हे,
दरूहा मन कभु कभु सांसद बन जाथे,
रात भर सुतय नही संसद भवन कस चिल्लाथे ।
नेता अउ दरूहा मन भाई भाई असन आय,
एक दारू के त दुसरा सत्ता के नशा म रहिथे,
दरुहा हर गोठ ल गली गली करथे,
नेता सादा कुरथा म तोपाय तोपाय फिरथे।
कंहू दारू ह नेता बर छूट होगे ,
त संसद के का होही हाल,
कतको नेता मन धरना परदरसन करही,
संसद म खुलवावव एक ठन बियर बार ।
रचना
हेमंत मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment