Tuesday 7 July 2015

लहर लहर मोर खेती खार(छत्तीसगढ़ी)

लहर लहर मोर खेती खार,
हरियर लुगरा कस दिखे अपार,
बम्हरी फूल के खिनवा पहिरे,
मोर धरती दाई करय सिंगार।

मोर धरती दाई.....

सुते बिजा मन रटपट उठगे,
पिका धीरे धीरे कतका धरगे,
पटपर परिया मन हरियर होवय,
जब बरखा माई के बोहे धार।

मोर धरती दाई.....

रुमझुम रूमझुम परसा डोले,
बम्हरी डोले करही डोले,
कांदी लागे जैसे केंस बगराये,
फुरूर  फुरूर जब चले बयार।

मोर धरती दाई.....

नवा बहुरिया कस धान हवय,
सम्हरे ओढ़े बने चुकचुक ले,
बियासी होगे खातू  छिंचागे,
होहि बढ़ीया धान के बाली तैयार।

मोर धरती दाई......

मोहलो मोहलो लागत हवय,
हरियर हरियर जम्मो खार,
पड़की परेवना चुरगुन के बोली,
मिल गावय जैसे राग मल्हार।

मोर धरती दाई करय सिंगार...
  

रचना-
हेमंत मानिकपुरी
भाटापारा
जिला-
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
मोबाइल-
८८७१८०५०७८

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