Monday, 13 July 2015

न जाने वो कितने घर (गज़ल)

जिसे अदना कहकर  फिजूल समझा,
वो खोंटे सिक्के आज काम आए।

कूड़े कहकर डाला जिसे गढढे,
आज वो मिट्टी को महका आए।

कहता रहा जिसे बेवफा गली गली,
उनकी दुआ पर हम घर सजा आए।

कौन कहता है पत्थर लगता है,
न जाने वो कितने घर बसा आए ।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

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