दुल्हा घोड़ी पे बैठे मुस्कुरा रहा था,
जिंदगी के आखरी पल सजा रहा था,
अब न मिलेगा हंसने का मौका उसे,
इस लिए पल पल खुशीयाँ मना रहा था ������
मंडप मे पहुचते ही खामोश हो गया,
मोबाइल से डाटा डिसकनेक्ट हो गया,
समझ गया हाथ मे वरमाला देखकर,
कहा प्रभु-मेरी जिन्दगी मे शाम हो गया������
तब से आजतक चुप चुप ही रहता है,
अब वो आवारापन न जाने कंहा रहता है,
कहता है समय नही मिलता जरा भी,
अब घर से स्कूल और स्कूल से घर पहुंचता है।
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रचना
हेमन्त कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
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