कवि बर कल्पना अब्बड़ फबथे,
कल्पना बर कवि जीथे मरथे।
रेखा सुनयना कोनो नई चाही,
कवि ल बस कल्पना कल्पना चाही।
सुतथ उठत बैठत जाने का करथे,
कोनो पगला कहिथे कोनो लपरहा कहिथे।
सही म कवि घलो हद कर डारथे,
कल्पना मिलिस तहां शुरू हो जाथे।
कवि ह देस बर चांउर छेना बचाथे,
कल्पना कल्पना म पेट भर खाथे।
रचना-
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला-
बलौदाबाजार -भाटापारा
छत्तीसगढ़
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