Saturday 11 July 2015

कवि बर कल्पना अब्बड़ फबथे (छत्तीसगढ़ी)

कवि बर कल्पना अब्बड़ फबथे,
कल्पना बर कवि जीथे मरथे।

रेखा सुनयना कोनो नई चाही,
कवि ल बस कल्पना कल्पना चाही।

सुतथ उठत बैठत जाने का करथे,
कोनो पगला कहिथे कोनो लपरहा कहिथे।

सही म कवि घलो हद कर डारथे,
कल्पना मिलिस तहां  शुरू हो जाथे।

कवि ह देस बर चांउर छेना बचाथे,
कल्पना कल्पना म पेट भर खाथे।

रचना-
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला-
बलौदाबाजार -भाटापारा
छत्तीसगढ़

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