Tuesday 7 July 2015

काबर लंका अब डहय नही(छत्तीसगढ़ी)

काबर लंका अब डहय नही,
काबर जुलुम ले कोनो लड़य नही,
आज भी हर ले जाथे सीता रावण,
अब काबर कोनो राम बनय नही ।

काबर लंका अब......

भाजी भांटा तो अतका मंहगा होगे,
नारी के असमत कतका ससता होगे,
भरे बजार म ओकर इज्जत लूट जाथे,
अब काबर कोनो काली दुर्गा बनय नही।

काबर लंका अब......

आज दानव मन के भरमार हवय,
मेघनाथ खरदूषन के राज हवय,
नारी ह अब अपन  छैहां ल डरथे,
अब काबर कोनो लछमन बनय नही।

काबर लंका अब.....

काबर आज बाप  बदनाम होवथे,
रक्षा करयीया कैसे भक्षक होवथे,
रिश्ता मर्यादा के रखवारी बर,
अब काबर कोनो युधिष्ठिर बनय नही।

काबर लंका  अब.....

नारी मन के खुल्ला व्यापार होवथे,
कोंख म ओकर काबर जान जावथे,
बेटी मन के जिनगानी ल बचाए  बर,
अब काबर कोनो कन्हैया बनय नही ।

काबर लंका अब.....

सबले चतुर हमन परानी आन,
बड़ पढ़ लिखे गुनमानी आन,
नारी जाति के उत्थान करेबर,
अब काबर कोनो मानुष बनय नही ।

काबर लंका अब डहय नही ..

रचना-
हेमंत मानिकपुरी
भाटापारा
जिला-
बलौदाबाजार-भाटापारा
८८७१८०५०७८

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