Thursday 31 December 2015

सारे पाप हम

सारे पाप हम खूब धोकर आए,
जीवन अपना हम पूरा तर आए।
गंगा के छाती मे जितना भी चाहा,
कूड़े करकट गंदगी हंसते छोड़ आए॥

बिसरित कर दी अरबो अस्थियां,
कितनी लाशें जाने हम छोड़ आए।
मां की ममता का सदुपयोग किया,
और ममता को ही मैला कर आए॥

और इतना से भी भरा हमारा नही मन,
क्या क्या करनी हम बेफिक्र कर आए।
लाखों अरबों झिल्लीयां पूजा की छोड़न,
ऐसे ही गहन प्रेम श्रद्धा से छोड़ आए॥

हजारों कलकारखानों की गंदा पानी,
रोज गंगा मे डूबकी लगाकर हंसते है।
गंगा मैया को पावन कह कह कर,
कितने विष गरल हम हर्षित छोड़ आए॥

जननी है हम सबकी पावन गंगा मैया,
मां के लिए चलो आज फर्ज निभाएं,
माता को माता का आदर सम्मान दें,
कुछ मानुष तन मे नेक करम कर आएं॥

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

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