जिंदा तो हैं हम लाशो के हुक्मरान बनकर
हम ताबूत से निकले भी तो हुक्मरान बनकर
ये फ़जाहत ये रवायत इस कदर चल पड़ी है
हम अगर डूबे है वो निकले हैं नूर-ए -जहान बनकर
सियासत के मयखाने मे डूबें है बेफिक्र रसूकदार
जब हम निकले तो बने हिन्दू या मुसलमान बनकर
किस कदर सम्हाले अपने शकून -ए - ईबादत ये मिट्टी
जब हम लूट रहे हैं किसी महफिल मे बदनाम बनकर
खेल खेल मे किसी ने हमारी मादरे-ए-कौमियत छिन ली
हम गज़ब घूमते है मज़नू बने कोई लैला बनकर
अब तो इश्क -ए-फ़साना बस मेरी गलियों मे है "हेमंत"
अब मै न जियूंगा न मुसलमान बनकर न हिन्दू बनकर
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार -भाटापारा
छत्तीसगढ़
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