इस रात की सुबह नही है
ले दे के दिन उतरा है
रात बिलबिला तिलमिला रही है
मेरे स्वप्नों के साथ
मुझे सोने नही देता
जैसे किसी ने दुश्मनी कर लिया है
दिन की अवशेष उत्तेजना
रात के आलस्य के बीच
जहां मै चैन पाता था परिपूर्ण
तकियों के करवट पर निढाल है
तरंगों की एक आवृत्ती
इस छोर से उस छोर तक
कैसे ताना बाना बुनती आ रही है
और मै निस्तेज सा इक ओर
अधखुली आंखों से नीहार रहा हूं
जहां धुंधले धुंधले से चित्र है
अधसुलझा अधसुनी कर्कश बातें
सीने मे धुक धुक की बेखौफ बातें
और फिर अधखुले आंखें
भौं फाड़कर देखने लगती है
टकटकी के बीच अलपक तरंगें हैं
कुछ अवसाद भी फूले हैं मन पर
मै हूं नही हूं या फिर कोई नही है
अधमरा सा वीदीर्ण लेटा हूं बिस्तर पर
इस रात की सुबह नही है.....॥.
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
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