Thursday 31 December 2015

इस रात की सुबह नही

इस रात की सुबह नही है
ले दे के दिन उतरा है
रात बिलबिला तिलमिला रही है
मेरे स्वप्नों के साथ
मुझे सोने नही देता
जैसे किसी ने दुश्मनी कर लिया है
दिन की अवशेष उत्तेजना
रात के आलस्य के बीच
जहां मै चैन पाता था परिपूर्ण
तकियों के करवट पर निढाल है
तरंगों की एक आवृत्ती
इस छोर से उस छोर तक
कैसे ताना बाना बुनती आ रही है
और मै निस्तेज सा इक ओर
अधखुली आंखों से नीहार रहा हूं
जहां धुंधले धुंधले से चित्र है
अधसुलझा अधसुनी  कर्कश बातें
सीने मे धुक धुक की बेखौफ बातें
और फिर अधखुले आंखें
भौं फाड़कर देखने लगती है
टकटकी के बीच अलपक तरंगें हैं
कुछ अवसाद भी फूले हैं मन पर
मै हूं नही हूं या फिर कोई नही है
अधमरा सा वीदीर्ण लेटा हूं बिस्तर पर
इस रात की सुबह नही है.....॥.

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment