Thursday, 31 December 2015

गज़ल

उतर रही है आसमान से खुशबूएं कोना कोना,
मंदीरो मस्जिदों मे परिंदों ने घर बनाया कोना कोना।

हमारे ही घर क्यों नही बनते इस रवायत पर,
टूटते हैं मंदिरों मस्जिदों पर घर का कोना कोना

मंदीर मस्जिद के रखवाले आखिर क्यों दंगा फसाद,
जब एक ही गुलाब से महकता है घर का कोना कोना।

खून चूस लेती है हैवानियत इंसानियत के रगो से,
क्या जवाब दोगे जब बिखर रही लाशें कोना कोना।

नफरतें ही इंसानियत को खाख खाख कर रही है "हेमंत"
कब तक उजाले छटपटाते रंहेंगे घर पर कोना कोना।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

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