मै क्यूँ रख देता हूं
पत्थरों पर मन की बात
हिलते हैं न पीघलतें हैं
पर संवेदनाएं आच्छादित है
पत्थर की नही मेरी अपनी
अपनी पीड़ा से..
कुछ तो फर्क पड़ेगा उनपर
टप टप बरसते आंसू भी
उन्हे जगा नही पाते
फिर भी पत्थर पर आंख गड़ी है
सोचता हूं उदास मुद्रा से
अपने कोमल हाथो से
उन्हें तनिक भी हिला पाऊं
संवेदनाओं के गहरे सागर पर
उन्हें फेंक आता हूं
डूब तो जाता है गहराइयों पर
पर पत्थर ही रह रह जाता है
मेरी तमाम कोशिशें विफल है
इक अवसाद रह जाता है
मेरे मन के किसी कोने पर
मैं क्यों रख देता हूं
पत्थरों पर मन की बात.......
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
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