Thursday, 31 December 2015

सफेद पके बाल

सफेद पके बाल,
कमर लाठी पर टिके हुए,
आंखो मे एक मोटा चशमा,
उजड़े हुए घर मे बूढ़ी दादी।
एक टूटा सा खाट,
बिछौना ओढ़ना मटमैला सा,
बच्चे शहर के चकाचौंध मे विलीन,
तेल के चिमनी के भरोसे बूढ़ी दादी।
कोने पर मिट्टी का चूल्हा,
मिट्टी/स्टील के दो चार बर्तन,
कभी मन हुआ तो बूढ़ी हाथों ने पकाया,
ज्यादातर भूखी सोती बूढ़ी दादी।
गंभीर शांत अशांत मुद्रा,
चेहरे की झुर्रियों मे अशांत रेखाएं,
कांपते होठो पर असंख्य,
यादों की धूप छांव पर बूढ़ी दादी।
तरसते आंखो पर है,
अनंत आकाश की गहराईयां,
उछलकर आंखो पर आते जाते ,
नीर के फैलाव पर बूढ़ी दादी।
सांसे जैसे रह रहकर उखड़ती है,
पर बूढ़ी हाड़ मांस जीने की जिद पर है,
पैरो की आहट सुन कान टिड़ आते है,
शायद अब भी राह तकती है बूढ़ी दादी।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

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