हां मै वही पिता हूं
जो कठोर है सख्त है
जो छाती पर अनंत अनंत
संवेदनाओं को समेटे है
हां मै वही पिता हू.....
जहां आंसू नही है
पर आंसूओं का बर्फ है
कर्तव्य मुझे रोने नही देता
चिंताएं पिघलने नही देती है
हां मै वही पिता हूं....
तपन की उष्णता पर दम भरकर
कांधा बोझ लिए चलता है
कभी दफ्तर कभी सड़कों पर
आपा धापी भागते कदम है
हां मै वही पिता हूं......
बेटा पति पापा मुझमे सब है
और उनमे ही मेरा घर है
इस लिए तत्पर हूं आकुल हूं
यह ध्येय ही मुझे गंभीर बनाता है
हां मै वही पिता हूं........
कभी सब्जी की थैला पकड़े
कभी खिलौने या कपड़े लिए
राशन वाले की घिड़कियां सुनते
थका पर आंखो मे चमक बिखरा है
हां मै वही पिता हूं.......
देर सांझ पसीने मे कड़कर
दो रोटी का इंतजाम करता हूं
जब ही घर लौटता हूं
तब कहीं घर मे खुशीयाँ उतरती है
हां मै वही पिता हूं......
फटे जूते मेरी पहचान बनते हैं
बिना स्त्री कमीज मुझ पर फबता है
धूल सड़कों का तिलक है मेरा
संतुष्टि उन आंखो का जैसे प्रसाद है
हां मै वही पिता हूं.........
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
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