Thursday 31 December 2015

गज़ल

बाहों मे जिनके रातभर  इक सुकून होती है,
और कोई नही केवल इक वो मां होती है।

जब चोट लगे हमे तो दर्द उनको आता है,
एसे  हर अफसानो की तरन्नुम वो मां होती है।

जरा सा हिले बिस्तर  कि वो सहम जाती है,
है रोज हर रात तारों के सफर पर वो मां होती है।

मां के तराना और खिलौने जो चांद से बने हैं,
गुड्डे गुड़ियों के कपड़े जो सीती वो मां होती है।

आजकल  बहुत बड़ा हो चला है तु "हेमंत"
आज भी तुझे जो बच्चा समझे वो मां होती है।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

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