Thursday 31 December 2015

पथराई आंखे

आंखे पथराई
बदन झुर्रियों के भरोसे
अतीत पर लिपटे
पूरी बरसात और ठंड
गर्मियों मे कंही अवनत के सहारे
पर क्षुधा शांत नही दिखती
लाख जतन
और रोटी कोसों दुर
किसी के सहारे या
भगवान के सम्मुख
फिर भी छलती भाग्य
सड़को पर बिना आंख के
पैर पकड़ते
या भगवान के नाम पर
जद्दोजहद करते
बिना आंख जिंदगी
सूर पर थिरकते वाद्य यंत्र
एक रूपया की बख्शीश
मरे हुए राजा की गुणगान
शानोशौकत पर मुजरा के समतुल्य
भविष्य की उम्मीदें
पर मंदिरों मजारों पर टिके हुए
उनकी तंगहाली की मजारें
मुस्लिम पर मदीने की बात
हिन्दू पर राम की बात
मजबूर है कोई मुफ्लिसी
तवे की रोटी के उपर
हां मै और तुम मजे से खाते हैं
कोई दोनो के दरमियाँ  ठाठ फोड़ते है
भूखे तो धर्म भूलते है
सबसे बड़ा ईमान
बेईमानी के बखश्शीश पर बुलंद है
पर बाबा ये क्या है
तम्बूरा पर धुन गा के
क्यों मरे हुए को जिला रहें हैं

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़

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