जीने के हजार तरीके होते हैं,
कोई मरकर भी जींदा होते हैं।
वो घूप्प अंधियारा के सीने पर,
जुगनुओं सा उजाला होते हैं॥
कुछ दौलत की खातिर जीते हैं,
कुछ सोहरत की खातिर जीते है।
जीना तो जब असल जीना होता है,
जो गरीबों के हिमायत होते हैं॥
कुछ महलों मे आंखें मूंदे होते हैं,
कुछ महलों के ईंटे चुनते होते है।
न हासिल करके जो खुश होते है,
हां एसे तो कुछ साहिब होते हैं॥
बैठ मजे से कुछ खाते होते हैं,
कुछ दाने दाने को मोहताज होते है।
भूखा रहकर जो सबको खिलाए,
एसे ही मानवता के पहचान होते हैं॥
मेहनत ईमानदारी के जो दीपक हैं,
निष्कपट भाव से जो जीवन जीते है।
सेवा भाव धरम हो जाये जिनका,
बिना तेल बाती एसे दीपक जलते होते है॥
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
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