दोस्ती का हाथ थामकर हम साथ साथ चलें तो कोई बात बने,
कुछ तुम हमे समझो कुछ हम तुम्हे समझें तो कोई बात बने ।
आक्षेप आखिरकर कब तलक लगाएँ एक दुजे के दिलों पर,
कुछ तुम मिटाओ रंज कुछ हम मिटाएँ रंज तो कोई बात बने।
हवाएँ भी जहरीली जान पड़ती कश्मीर की धरती पर,
कुछ तुम लाओ अमन कुछ हम फैलाएँ अमन तो कोई बात बने।
आवाम दोनो मुल्कों के दिन रात डर के जीते है अपने ही घर पर,
कुछ तुम जलाओ चिराग कुछ हम जलाएँ चिराग तो कोई बात बने।
कब तलक यहां नफरतों की दर-ए-दीवार बनती रहेगी "हेमंत"
कुछ तुम बनाओ जन्नत कुछ हम बनाएँ जन्नत तो कोई बात बने।
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
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