आखिर हम क्यूं बिखरने लगे हैं
चौखट पर दरवाजा भुलने लगे हैं
खुमारी यह किस तरह की है
गैरों को हम अपना कहने लगे हैं
भुला भी शाम तक घर लौट आता है
हम राह पर बेखबर चलने लगे हैं
काटने को मजबूर है अब गुलाब भी
आज भाई भाई पर हम वार करने लगे हैं
जागा है हर जगह अब हैवानियत "हेमंत"
दामन वफाओं का दागदार करने लगे हैं ।
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
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