Monday 26 September 2016

२१२२/२१२२/२१२२
बहर--रमल मुसद्दस सालिम

गांव की तुम आब़दाना याद रखना,
नीम बरग़द और सावन याद रखना।

चांद तारे आसमा गर मिल भी' जाये,
तुम हमेशा घर गरीबी याद रखना।

जा रहे हो तुम अगर घर छोड़ कर तो,
देख मां की चार बातें याद रखना।

रोज बूढ़ी आंखें' तकती राह होंगी,
अधमरी सी जान वो तुम याद रखना।

लील जाती है शहर ईमान सब कुछ,
शाम को निकलो मगर घर याद रखना।

ग़ज़ल
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok



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