श्रृंगार की कविता
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मधु मिलन की बेला,
शहद तार तार हो रहे हैं,
व्याकुल दोनो अंतर्मन,
पीयूष अधरों से पी रहे हैं।
देंह दहक दहक रहे हैं,
सांसें उधड़ बून कर रही है,
जब चक्षु मिले ह्रदय तल से,
अंबर धरती पर बरस रहे हैं।
उमंग भर आई है जीवन मे,
विरही दिन बिसर गये हैं,
सच्चा प्रेम का अर्पण पाकर,
मुरझाई यौवन तर हो रहें है।
प्रेम के अद्भुत आंगन में,
पायल झुमके खनक गये हैं।,
कंगन चूड़ी बिंदीया गज़रा,
सब पिया पिया ही बोल रहे हैं।,
जब जब बांहों की वरमाला,
प्रियतम प्यारे मुझ पर वारे हैं,
मधुशाला की हाला बहती है,
अधरों पे प्याले रस घोल रहे हैं।
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा।
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़ok
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