Monday 26 September 2016

समीक्षार्थ--------

आल्हा छंद
"वीर रस"

धीर देख के हमरो भैया,दुशमन समझे हमे लचार।
उठा जो तलवार रे भैया,काट दियो गरदन हजार।।

जब जब कोनो दुश्मन आए,फरके जावे भुजा हमार।
खून देंह के डबकन लागे,जैसे खौले लोह अंगार।।

तुम करगिल भी हार चुके हो,युद्ध हुआ जो चौथी बार।
अब साहस भी ना ही करियो,मंहगा पड़ जाये इस बार।।

मत छेड़ो भारत के धरती,बात मान लो आज हमार।
सुत पूत कोई नही बांचे,जब दियो गरज के ललकार।।

साहस बचे नही अब जानो,है छदम युद्ध को तैयार।
वादियों मे पैसा बांट के,युवकों को करते गुमराह।।

जेकर देश मरद न जनमे,छुप के करै उही तो वार।
नाक कान छिदवा के हिजड़ा,कर लय औरत के सिंगार।।

आल्हा छंद
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok

No comments:

Post a Comment