Monday 26 September 2016

बहर -रजज मुसद्दस सालिम
अरकान-२२१२/२२१२/२२१२
काफ़िया-आन
रदिफ़-है

पैसा यहां/सब का खुदा/भगवान है,
कोई नही/सच का बता/पहचान है।

बैठी गरी/बी घर बिका/है इक तरफ़,
है इक तरफ़/कोई बना /धनवान है।

सौ बार जल/जाते दिये/जल ना सका,
हर दम चली /आती ख़फा/तूफ़ान है।

बाजार मे /सब बेचकर /आया चला,
अब जिस्म है/टूटा हुआ/अरमान है।

देते हमा/रा हक बता/वो इस तरह,
जैसे रहा/हम पर अदा/एहसान है।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok










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