बहर -रजज मुसद्दस सालिम
अरकान-२२१२/२२१२/२२१२
काफ़िया-आन
रदिफ़-है
पैसा यहां/सब का खुदा/भगवान है,
कोई नही/सच का बता/पहचान है।
बैठी गरी/बी घर बिका/है इक तरफ़,
है इक तरफ़/कोई बना /धनवान है।
सौ बार जल/जाते दिये/जल ना सका,
हर दम चली /आती ख़फा/तूफ़ान है।
बाजार मे /सब बेचकर /आया चला,
अब जिस्म है/टूटा हुआ/अरमान है।
देते हमा/रा हक बता/वो इस तरह,
जैसे रहा/हम पर अदा/एहसान है।
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok
No comments:
Post a Comment