Monday 26 September 2016

२२१२/२२१२/२१२२

दुश्मन सल़िकेद़ार जब घर पे आया,
उसने छुरा इस बार दिल पे चलाया।

जां से बढ़कर पा लिया था जिसे मै,
ये इश्क़ तो अब जान लेने पे आया।

उस पार दरिया के खुशी का शज़र है,
परिंदा हजारों ख्वाब ले उड़ के आया।

दौलत मुहब्बत शोहरत आरज़ू सभी
ये फ़ालतू क्या क्या सितम ले के आया।

शाईर ने बस एक खता क्या किया तो,
पूरा शहर घर गाल़ियां मढ़ के आया।

ग़ज़ल
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok








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