अरकान
२१२२/२१२२/२१२२/२१२२
बहर-----
रमल मुसम्मन सालिम
तर्ज---
ला ल ला ला
आजकल के नौजवानो का बहाना राम जाने
सीखना ये काम करना कब करेंगे राम जाने।
आंख पे है बाल बिखरे रोज बनठन मस्त
निकले,
ये बहकना अब भला बंद कब करेंगे राम जाने।
शौख है तो भी रखे हद मे कदम अपने मुहाने,
मयकशी को छोड़ना बंद कब करेंगे राम जाने।
टूट जाते हैं उक़ूबत के हलक पर सादगी भी,
बेचना ये ज़ाबिता बंद कब करेंगे राम जाने।
आज कम है कल ज़ियादा आग लग जाती कंही है,
यूं जलाना अब शहर बंद कब करेंगे राम जाने।
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok
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