बहर-रजज मुसद्दस सालिम
२२१२/२२१२/२२१२
तर्ज- ला ला ल ला
मैं चार सिक्के भी बचा पाया नही,
तूफां बताकर तो कभी आया नही।
मजबूरियां क्या क्या रही होंगी तभी,
ये मौत भी खुलकर अभी आया नही।
बस चाहता था दो घड़ी सावन रहूं,
बरसात तो इस साल भी आया नही।
बांटा करो तुम राम को बांटो खुदा,
इसके सिवा कुछ काम तो आया नही।
एक चांद पर एतबार ही था बस हमे,
वो भी मगर छत पर कभी आया नही।
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़ok
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