Monday 26 September 2016

धक धक करते सीने से देखो,
कोई निज प्राण निकाले जाता है।
मेरी मां की धड़कन से बतलाओ,
कोई कश्मीर निकाले जाता है॥

आबादी बर्बाद हो रही है जवां,
कोई केसर कैसे यहां खिलाएगा।
चीनारों के जंगल से कोई हत्यारा,
दिन रैन चैन उड़ाने आमादा है॥

सिन्धु की अंतरमन यही कहती है,
सुन लो भारत के वीर सपूतों तुम !
उखाड़ फेंको इन पत्थर बाजों को,
जो कशमीर को नापाक बनाता है॥

चेनाब रोती है झेलम रोती है देखो,
डल वुलर और झील नागिन रोती है।
हिमालय की आंखो पर देख आंसू ,
ये वादी -ए- जन्नत सिहरा जाता है॥

बहकावे मे न आना नौजवानों तुम,
ये अपनों के नही होते तो तुम्हारे कैसे?
इनको मतलब है बस खून बहाने से,
गंगा जमुनी तहज़ीब इनको न भाता है॥

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़ok

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