Monday 18 January 2016

गज़ल

प्यार की रस्मों को बहोत निभाया है हमने,
कांटो के साथ खूब दोस्ती निभाया है हमने।

बरस आए जो हम पे बे मौशम की तरह,
उनसे भी खूब रिश्तेदारी निभाया है हमने।

इक आसरा था पर मिल्कियत थी उनकी,
ये मोहब्बत भी ब्याज देकर निभाया है हमने।

किस तरह का खेल है यह इस दौर -ए-जहां मे,
जीतकर भी हारने का फर्ज निभाया है हमने।

सूना सूना आज भी है  घर आंगन मेरा "हेमंत"
जब सराय को घर बनाने का जिद निभाया है हमने।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

No comments:

Post a Comment