ऊँचा दरख्त था
झाड़ फूँस से
इक आशियाना बना था
दो तीन अंडे
जब फूटे तो जीवन था
चोंच खोले नन्हे नन्हे
माँ की चोंच से
पेट भर रहे थे
तभी आवाज आई
खर खर खर खर...
माँ के होश उड़ गये
वो काट रहे थे
दरख्त को बेदर्दी से
बनाना था उनको
सड़क पे इक नई सड़क
कई घर टूट रहे थे
कई बेघर हो रहे थे
ये घर किसी का उजाड़कर
किसी के घरौंदे पर
सड़क बना रहे थे
रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment