आओ-आओ जंगल जायें,
पर्वत घाटी पर इठलायें।
पगडंडी पर हम बलखायें,
पेड़ लताओं से बतियायें।
भाग-दौड़ तितली के पीछे,
चिड़ियों के सँग-सँग उड़ जायें।।
रेतीली नदियों में जाकर,
तैर - तैरकर खूब नहायें।
झरनों के सँग हँसी ठिठोली,
नाचें - कूदें झूमें - गायें।।
पेड़ों पर बंदर दिख जाये,
गिलहरियों से मिलकर आयें।
तेज भागते खरगोसों से,
हम सब मिलकर रेस लगायें।।
नील गाय वन भैंसा चीतल,
खोजे इनको घूम - घूमकर।
अगर दिखे तो बड़े प्यार से,
देखें सबको और दिखायें।।
पेड़ों के झुरमुट में देखो,
शायद बब्बर भी दिख जाये!
भालू दादा के घर जाकर,
मीठा ताजा मधुरस खायें।।
आओ-आओ जंगल जायें,
पर्वत घाटी पर इठलायें......
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
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