मुसुवा भाई मुसुवा भाई,
काबर कुतरे मोर रजाई।
दाँत आय या धरहा आरी,
सबो जिनिस ला कुतरे भारी।
लुगरी ,कुरथा ,कथरी ,चद्दर,
पलंग सुपेती नाचय थरथर।
डब्बा-डिब्बी चेंदरा-फरिया,
काटे बर का खाये किरिया।
बिला करें हस जी तैं घरभर,
रोज-रोज रहिथस आने घर।
मुसुवा कहिथे रोवत-रोवत,
कुतरे ला परथे जागत सोवत।
दाँत बाढ़थे रोजे सरलग,
पीरा मोर दुनिया ले बिलग।
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
श्रेणी - बाल कविता
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