Saturday, 10 August 2024

मुसुवा भाई

मुसुवा   भाई   मुसुवा  भाई,
काबर  कुतरे    मोर   रजाई।

दाँत   आय  या  धरहा आरी,
सबो जिनिस ला कुतरे भारी।

लुगरी  ,कुरथा ,कथरी ,चद्दर,
पलंग   सुपेती नाचय थरथर।

डब्बा-डिब्बी   चेंदरा-फरिया,
काटे   बर  का खाये किरिया।

बिला  करें हस जी तैं घरभर,
रोज-रोज   रहिथस आने घर।

मुसुवा  कहिथे   रोवत-रोवत,
कुतरे ला परथे जागत सोवत।

दाँत   बाढ़थे   रोजे   सरलग,
पीरा  मोर  दुनिया  ले बिलग।


हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
श्रेणी - बाल कविता

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