कपास
मैं कपास हूँ सुन लो भाया,
मैं आया तो कपड़ा आया।
मेरा फल जब पक जाता है,
अन्दर रूई बन जाता है।
'बुनकर' भैया काते मुझको,
तब मिलता है धागा तुमको।
सब रंगो में डाला जाता,
रंगीला मैं बनकर आता।
जब 'करघा' से बुनता हूँ मैं,
कपड़ा बढ़िया बनता हूँ मैं।
फिर दर्जी की बारी आती,
सिलकर पोशाकें बन जाती।
बड़े मजे से पहना जाता,
हर मौसम से तुम्हे बचाता।
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
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