पीड़ा में आनंद घुला है
काँटो में ज्यों फूल खिला है
प्यार करूँ या फिर दूँ गाली
एक पुराना दोस्त मिला है
मेरे घर जिस दिन आओगे
कहना होगा इश्क बला है
कितने वर्षों के बाद सही
रस्ता मुझको एक मिला है
हँसना- वसना सीख-साख ले
हँसना भी तो एक कला है
राजाओं की हर बाजी में
प्यादों ने भी दाँव चला है
हँस्ता गाता रहता हूँ पर
मेरे भीतर एक ख़ला है
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
रचना श्रेणी- कविता
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