शहर का हर शख़्स तेरा दीवाना है
कोई पागल है कोई मस्ताना है
हर किसी को बहुत प्यार से पिलाती हो
ये तेरी आँखें क्या शराबख़ाना है
उसने बालों को यूँ झटकाया होगा
आज मौसम हुआ किस कदर सुहाना है
मेरी आँखों में उतरने की भूल मत करना
ये तो लावों का जलता हुआ इक ठिकाना है
मिट्टी से प्यार करना सीख लो भाई
इसी मिट्टी में एक दिन मिल जाना है
कभी मस्जिद कभी मंदीर में उड़कर आ गये
इन परिंदों का न कोई मजहब न ठिकाना है
हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
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