Wednesday, 25 September 2024

कविता नुमा ग़ज़ल


शहर   का    हर    शख़्स   तेरा   दीवाना है
कोई     पागल     है    कोई     मस्ताना   है


हर  किसी   को बहुत  प्यार से  पिलाती हो
ये    तेरी    आँखें      क्या   शराबख़ाना  है


उसने    बालों    को   यूँ   झटकाया   होगा
आज  मौसम  हुआ   किस कदर सुहाना है


मेरी  आँखों  में  उतरने  की भूल मत करना
ये तो लावों का जलता हुआ इक ठिकाना है


मिट्टी    से   प्यार  करना   सीख    लो  भाई
इसी  मिट्टी   में   एक   दिन  मिल  जाना  है


कभी मस्जिद कभी मंदीर में उड़कर आ गये
इन  परिंदों का न कोई मजहब न ठिकाना है


हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़

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