Saturday 7 September 2024

मेरी माँ...

मेरी   माँ   भी  अजब-गजब  है,
बात  समझ  यह  अब  आया है।
छलनी     से     धूप    छानकर,
उसने    छत    पे   सूखाया   है।।

तिकड़म   बाजों    को   यूँ   ही,
पल     में     धूल    चटाया   है।
जिसने     अवकात       बताया,
माँ   ने   उसको   नचवाया    है।।

दुर्गा     काली      रनचंडी     है,
बनी   लताओं   सी   काया   है।
कभी  कूटती  है   जी  भर  कर,
कभी  प्यार की   वह  छाया  है।।

पत्थर   को  भी  सोना  कर  दे,
एसी      उसकी      माया     है।
माँज-माँज कर घीस-घीस कर,
मुझको  चम-चम   चमकाया है।।

जहाँ-जहाँ   पग   धारे   अम्मा,
वैभव  चलकर  खुद  आया  है।
बगिया   जैसे  घर  आँगन  को,
फूलों   से   भर  महकाया    है।।

उस   ममता  की  मूरत  का ही,
आओ हम पल-पल ध्यान करें।
जिसके  आँचल  में  सदियों सें,
निर्मल   ममता  सुख  पाया  है।।

हेमंत कुमार "अगम"
भाटापारा छत्तीसगढ़
रचना श्रेणी-गीत

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