बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
२१२/२१२/२१२/२१२
प्यार मे फिर सहारा नही मिलता है,
इस नदी का किनारा नही मिलता है।
मै बसर तो हो जाऊं किसी कोने मे,
उसके दिल मे इजारा नही मिलता है।
देख कर दूर से लौट आया हूं मै,
हर जमी को सितारा नही मिलता है।
या खुदा माफ कर तेरे दामन मे भी,
मां के जैसा शकीना नही मिलता है।
इस शहर के हजारों अदायें मगर,
गांव का वो नजारा नही मिलता है।
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़
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