Tuesday, 29 November 2016

१२२/१२२/१२२/१२२

हिफाजत करे जो मिटाता है क्या,

जलाकर दिये वो बुझाता है क्या।

वो सोता है मगर आंख लगती नही,

गुनाहों का पैकर  डराता है क्या।

धुआं ही धुआं है अभी तक यहां,

किसी ने शहर फिर जलाया है क्या।

इशारों इशारों मे उसने जो कहा,

यूं भी प्यार कोई जताता है क्या।

वो जाकर मुआँ लेट गया कब्र पर,

यूं भी कोई दोस्ती निभाता है क्या।

ग़ज़ल
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़





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