Tuesday, 29 November 2016


१२२२/१२२२/१२२२

बड़ी चालाकी से मकसद बनाते हो,

कभी मजहब कभी सरहद बनाते हो।

जलाकर घर धरम के नाम पर तुम तो,

सियासत के बड़े परिषद बनाते हो।

बता किस बात की मिलती सजा हरदम,

हमे तुम तीर का तरकस बनाते हो।

सियासत मैली है ये जानते हो तो,

बताओ क्यूं इसे मसनद बनाते हो।

वो बच्चा है उसे बचपन देना चाहिए,

अभी क्यूं तुम उसे कातिल बनाते हो।

ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा

No comments:

Post a Comment