बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम
२२१२/२२१२/२२१२
गम के हवा को वो हवा कर देती थी,
बीमारी मे मां झट दवा कर देती थी।
ए चांद क्या मालूम भी होगा तुझे,
गालों पे मां तेरा टिका कर देती थी।
जब भी पसीने से नहाकर आता मै,
मां अपनी आंचल से हवा कर देती थी।
डर था उसे मै जल नही जाऊं कहीं,
मां इस लिए लड़ियां जला कर देती थी।
जब रात भर घर मै नही आया कभी,
दरवाजे पे मां रतजगा कर देती थी।
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़
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