बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
२१२२/१२१२/२२
रात के आखिरी शमा तक दे,
साथ देना है तो वफ़ा तक दे।
जब तबीयत को आजमाना हो,
बस दुआ ही नही दवा तक दे।
जान लेना है तो ले ले
पर जरा मौत मे मज़ा तक दे।
प्यार मे यूं अंधा नही होते,
मै गुनहगार हूं तो सजा तक दे।
तू अगर दिल से चाहता है तो,
प्यार भी दे हमे बला तक दे।
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़
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