बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आखिर
२१२/२१२/२१२/२
रहनुमाई की बरसात है क्या।
फिर चुनाओं के हालात हैं क्या।
झुठ भी बोलो अगर तो सही है,
ये नेताओं के शहरात है क्या।
आग है इस पुराने शहर मे,
फिर दंगो जैसा हालात है क्या।
चीखें फिर से सुनाई दे कोई,
बहनो के लूटे अस्मात है क्या।
लोग कितने मजे से यहाँ हैं,
ये शहर के हवालात हैं क्या।
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़
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