१२२२/१२२२/१२२२
कभी तो वक्त ये होगा हमारा भी,
अभी तो रात है होगा उजाला भी।
कमाई सारी तो हमने लगा दी है,
फसल मे इश्क के होगा ईजाफा भी।
ये बिछड़न का जो मौसम है गुजर जाये,
हसीनों का यहीं होगा इशारा भी।
वो पीते हैं तो पीते ही रहें मयकश,
उठा बोतल गुजर होगा हमारा भी।
ये मिट्टी तो बनाती है मिटाती है,
यहां से जल्द ही होगा रवाना भी।
समन्दर है दगाबाजों का ये दुनिया,
भँवर मे देखना होगा किनारा भी।
ग़ज़ल
हेमंत कुमार मानिकपुरी
भाटापारा
छत्तीसगढ़
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