Tuesday 29 September 2015

गज़ल

आज़र्दाह हुआ है दिल आदमियत के बगैर,
उजड़ा हुआ है चमन आदमियत के बगैर।

आश़ियां जाके हम किस किस शहर मे बसायें,
धुंआ धुंआ हर शहर हुआ है रौशनी के बगैर।

आशुफ़्ता-ए -आस करें आसरा किस किस पर,
दिल गुमराह है इक़्तजा-ए-इख्लास के बगैर।

इब्तिला-ए-इबादत मे इबारत-ए-इमान न रही,
एक कदम भी चला जाता नही अब खुदा तेरे बगैर।

"हेमंत" किस तरह जी लेते हो तुम बनके तब्बसुम,
मुर्दे ही तो बने हैं यहां लोग इंसानियत के बगैर।

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

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