Tuesday 29 September 2015

नारी उत्थान (छत्तीसगढ़ी)


       " नारी के उत्थान करेबर"
                       (व्यंग)

नारी के उत्थान करे बर सबो मनखे गाना गाथे,
फेर नारी के आघु बढ़े के रद्दा म कोन कांटा बगराथे।
नौकरी करथे बनी करथे घर के सकला जतन करथे,
तभो ले समाज कुकुर असन काबर नारी ल गुर्राथे॥

माता जननी ममता के मूरत जाने कतका नाम धराथे,
तभो ले काबर नारी के मान मरियादा असमथ लूट जाथे।
कोन पराया कोन सग रहय कतका पाप भरे भीतर हे,
हमन डायन ले गे गुजरे हन वो ह घलो पांच घर छोड़ जाथे॥

कोंख म आथे तहां उहें मारे के तिकड़म बाजी चलथे,
बेटा लात मार दिही बेटी जिनगी भर दाई ददा सुमरथे।
कोनो समझे नही बात काबर पढ़े लिखे चाहे अड़हा होवय,
बेटी तो आय बीजहा असन ओकरे ले संसार जनमथे॥

समाज के उत्थान होवत हे का पतन समझ नई आवय,
नारी के उठना बैठना चलना ओढ़ना म काबर तीर चलाथे ।
"नारी नारी जपे अउ नारी बर तपे"के हाना इंहा होवथे,
इंहा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना काबर धरे धरे रहि जाथे॥

रचना
हेमंतकुमार मानिकपुरी
भाटापारा
जिला
बलौदाबाजार-भाटापारा
छत्तीसगढ़

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